जैन साधना की विशेषता : जैन साधना में किसी जाति कुल या अवस्था विशेष की अपेक्षा नहीं है. जो भी निष्कपट और मन से पापों का परित्याग कर वीतराग भाव की और अग्रसर है वही इसका अधिकारी है.राजा से लेकर रंक और उच्च कुलीन ब्राह्मण से लेकर हरिजन तक कोई भी आबाल वृद्ध ह्रदय शुद्धी के साथ इसमे प्रविष्ट हो सकता है. जैन साधना ने छोटे दूषण को भी अपेक्षा योग्य नहीं माना उसका सिदांत है की दोष छोटा भी अग्नि कण की तरह विनाशक होता है.जैन साधना किसी अन्य देवी देव की साधना नहीं पर वह आत्मा से आत्म देव की ही साधना है उसका स्पष्ट निदेश है की दुदार्न्त आत्मा का दमन करो वश में किया हुआ आत्मा इस लोक और परलोक में सुखी होता है.
जैन साधना की सिदी भी भगवान या किसी देवाधीन नहीं,वह अपने ही पुरुषाथ के अधीन है वहा साधना का फल शुद्ध स्वरूप की आत्मा ही है .
जैन साधना की सिदी भी भगवान या किसी देवाधीन नहीं,वह अपने ही पुरुषाथ के अधीन है वहा साधना का फल शुद्ध स्वरूप की आत्मा ही है .